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Friday, 6 October 2017

सेवा

सेवा

सेवा  का अर्थ है-किसी आत्मा का स्तर ऊँचा उठाना। किसी कष्ट पीड़ित को पैसा या सामान देने से सामयिक सहायता हो सकती है, पर आत्मा का कल्याण ज्ञानदान देकर, उसके स्तर को ऊँचा उठाने में ही हो सकती है, इसीलिए सेवा को ही ज्ञानयज्ञ कहा जाता है। हम अपने लिए जिस प्रकार स्वाध्याय और सत्संग का साधन जुटाते हैं, उसी प्रकार दूसरों के लिए यह उपकार करने की कुछ न कुछ योजना नित्य बनानी चाहिए। इससे बड़ा पुण्य-परमार्थ इस संसार में और कुछ नहीं हो सकता। यह कार्य अपने परिवार से ही आरंभ करना चाहिए। कोई सुविधा का ऐसा समय ढूँढ़ना चाहिए जिसमें घर के अधिकांश व्यक्ति इकट्ठे हो सकें। इस समय एक पारिवारिक सत्संग प्रतिदिन चलाया जाए। २४ गायत्री मंत्रों का सब लोग मिलकर जप करें, माता के चित्र को धूप दीप से पूजन करें, युग निर्माण सत्संकल्प को एक पढ़े दूसरे दोहरावें, कोई भजन गाया जाए, फिर किसी उत्तम पुस्तक का अंश अथवा अखण्ड ज्योति का पृष्ठ पढ़कर सब को सुनाया जाए। परिवार में प्रतिदिन उत्पन्न होने वाली समस्याओं पर भी इस सत्संग में विचार-विनिमय किया जाए। इस प्रकार सामूहिक उपासना एवं विचारगोष्ठी के रूप में यह सत्संग नियमित रूप से चला करे तो उसका प्रभाव सब लोगों के जीवन पर अवश्य पड़ेगा और घर में सद्भाव, सद्विचार, सत्कर्म एवं सज्जनता की धर्म परंपरा बनी रहेगी। सद्विचारों के अभाव में ही कुबुद्धि उपजती और पनपती है। यदि उसका उन्मूलन करने के लिए पारिवारिक सत्संग चलते रहें तो हर घर में धार्मिक वातावरण बना रहेगा और स्वर्गीय वातावरण दिखाई पड़ता रहेगा। परिवार के क्षेत्र से बाहर भी यह सेवा कार्य बढ़ाया जाना चाहिए।

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